A- A A+
शब्द में ही ब्रह्म है
सांची विश्वविद्यालय में तत्वबिन्दु कार्यशाला का आयोजन

भारतीय दर्शन की महान विभूति वाचश्पति मिऋ द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत "तत्वबिन्दु" पर आधारित पांच दिवसीय कार्यशाला का शुभारम्भ साँची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्यन विश्वविद्यालय में किया गया।२१ से २५ मार्च तक कार्यशाला के उद्घाटन सस्त्र में बोलते हुए अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के उप कुलपति रहे प्रोफ्षर कपिल कपूर ने कहा की भारतीय भाषा शब्द में ही ब्रह्म है और यही शब्द भारतीय भाषा दर्शन का बीज है।उन्होंने भारतीय भाषा दर्शन और पश्चातय भाषा दर्शन की तुलना कर बताया की भारतीय भाषा दर्शन के लिए ग्रंथो का अध्यन आवश्यक है, लेकिन ग्रंथो के अध्यन के लिए आस्था ज़रूरी है । प्रो. कपिल कपूर ने कहा की भारतीय ज्ञान परम्परा में ज्ञान का आधार व्यक्ति की चेतना है और इसके केंद् में भाषा ही है ।

महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. कपिल कपूर ने बताया की वाचस्पति मिऋ द्वारा लिखित तत्वबोधिनी के ब्रह्मकांड के विचार पाश्चात्य दर्शन से मिलते जुलते है । उन्होंने कहा की शब्द, ध्वनि भी है ,भाषा भी है, स्वरूप भी है और शब्द,शब्द भी है । शब्द का अपना बोध और चिंतन है ।उनका कहना था की शब्द एक दीपक की तरह है ,जिसका अपना एक रूप और आकृति है ।

प्रो. कपूर ने कहा की भारतीय ज्ञान परम्परा में ज्ञान ,कर्म और भक्ति का महत्व है । उन्होंने बताया की आदि शंकराचर्या ने ज्ञान और कर्म के जोड़ को भक्ति के बराबर बताया। पांच दिन चलने वाले इस तत्वबिन्दु कार्यशाला में सम्लित होने पहुंचे राष्ट्र्य संस्कृत संस्थान के पूर्व कुलपति प्रो. वी कुटुम्भ शास्त्री के बताया की वाचस्पति मिऋ को सभी शास्त्रों का ज्ञाता कहा जाता था । उन्होंने ९वी शताब्दी में मींमासा की टिपणी के रूप में तत्वबोधिनी लिखा था और इसमें शब्द बोध की पांच अलग अलग पारम्परिक व्याख्या की थी । वाचश्पति मिऋ ने वैदिक विचार और परम्परा की छह अलग अलग टिप्णिया भी लिखी थी ।जिसके कारण उन्हें सभी शास्त्रों का विशेषज्ञे कहा जाता था।  

सांची विश्वविद्यालय के बरला अकादमिक परिसर में आयोजित इस कार्यशाला में वाचस्पति मिऋ उल्लेखित स्फोट सिद्धांत ,वाक्यस्फोट,वर्णमाला सिद्धांत, अंत्यावरण सिद्धांत पर गहन चर्चा की जाएगी। स्फोट सिद्धांत पर नार्थ बंगाल विश्वविद्यालय के प्रो. सुनंदा शास्त्री ,अंत्यावरण सिद्धांत पर प्रो. वी कुटुम्भ शास्त्री, अन्विताविधानवाद सिद्धांत पर पुणे विवि के प्रो. देवनाथ त्रिपाठी तथा अभिहीतानवयवाद सिद्धांत पर पुणे विवि के प्रो. वीएन झा कार्यशाला को बोधित करेंगे । भारतीय दर्शन अनुसन्धान परिषद की और से प्रायोजित इस कार्यशाला में बड़ी संख्या में देशभर के विश्वविद्यालयो से भाषा विज्ञानं और संस्कृत के शोधाथ्रियो ने पंजीयन कराया है ।

-सांची विवि में वाचस्पति मिऋ के कार्य पर कार्यशाला
-वाचस्पति मिऋ द्वारा लिखित मींमासा की टिपणी है तत्वबिन्दु
-२१-२५ मार्च तक पांच दिवसीय कार्यशाला
-ज्ञान का आधार व्यक्ति की चेतना है -प्रो. कपिल कपूर
-भारतीय दर्शन अनुसन्धान परिषद द्वारा प्रायोजित

सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के 8 छात्र जून 2017 की यूजीसी नेट परीक्षा में चयनित हुए हैं। सांची विश्वविद्यालय के इन सभी 8 छात्रों ने नवंबर 2017 में नेट की परीक्षा दी थी। यह कामयाबी हासिल करने वाले छात्रों में से चार योग विभाग के छात्र हैं जबकि दो हिंदी के तथा एक संस्कृत और एक बौद्ध अध्ययन विभाग का है। नेट यानी नेशनल एलीजीबिलिटी टेस्ट में चयनित होने पर कोई भी छात्र/शोधार्थी विश्वविद्यालय अथवा कॉलेज स्तर पर असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयन के लिए पात्र हो जाता है।

नेट परीक्षा में कामयाब होने पर विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य प्रोफेसर याज्ञेश्वर शास्त्री ने इन छात्रों को बधाई दी। सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी अपनी सफलता का श्रेय विश्वविद्यालय में एम.फिल और पी.एच.डी के पाठ्यक्रमों के प्राध्यापकों को दिया है। इन छात्रों का कहना है कि प्राध्यापकों द्वारा दोनों ही पाठ्यक्रमों के दौरान ही उन उन्हें नेट की परीक्षा की तैयारी की प्रेरणा दी जाती रही। पिछले साल भी सांची विश्वविद्यालय से 3 छात्रों ने यूजीसी नेट की परीक्षा में सफलता हासिल की थी।

सांची विश्वविद्यालय पी.एच.डी करने वाले प्रत्येक छात्र को प्रतिमाह 14 हज़ार रुपए एवं एम.फिल करने वाले प्रत्येक छात्र को 8 हज़ार रुपए की स्कॉलरशिप देता है तथा नेट जैसी परीक्षाओं के लिए विशेष अध्ययन क्लासेस भी आयोजित करता है।

इस साल जिन छात्रों का चयन यूजीसी नेट में हुआ है उनकी सूची निम्नानुसार है-

क्र.

नाम

विभाग

1.

रोशन कुमार भारती

एम.फिल(योग)

2.

भानू प्रताप बुंदेला

एम.फिल(योग)

3.

बृजेश नामदेव

एम.एस.सी(योग)

4.

धनंजय कुमार जैन

पी.एच.डी(योग)

5.

अनीश कुमार

पी.एच.डी(हिंदी)

6.

कपिल कुमार गौतम

एम.फिल(हिंदी)

7.

आशीष आर्य

पी.एच.डी(संस्कृत)

8.

लेखराम सेलोकर

पी.एच.डी(बौद्ध अध्ययन)

- एक दूसरे से साझा की संस्कृति और आचार-विचार
- शिक्षा, कला और मौसम पर भी हुई बातचीत
- सांची विश्वविद्यालय के छात्रों को नागालैंड आमंत्रित किया
- प्रधानमंत्री के एक भारत-श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम के तहत म.प्र की पहल

नागालैंड के विभिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे 22 छात्रों का एक दल सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय पहुंचा। इन छात्रों ने विश्वविद्यालय के प्राकृतिक वातावरण के अलावा विभिन्न कक्षाओं में पहुंचकर सांची विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ मुलाकातें कीं और शिक्षा संबंधी विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। इन छात्रों ने एक दूसरे के साथ अपनी संस्कृति, आचार-व्यवहार, कला, शिक्षा, मौसम जैसे विषयों पर बातचीत की। नागालैंड के छात्रों ने भी सांची विश्वविद्यालय के छात्रों को अपने प्रदेश में आमंत्रित किया।

दरअसल, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की "एक भारत श्रेष्ठ भारत" पहल के तहत देश के विभिन्न राज्यों के बीच आपसी सामंजस्य बढ़ाने के उद्देश्य से कई राज्यों को एक साथ जोड़ा गया है। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश का समन्वय उत्तर पूर्वी राज्यों मणिपुर और नागालैंड से स्थापित किया गया है। आपसी संपर्क बढ़ाने और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने के उद्देश्य से तीनों राज्य आपस में पर्यटन, तकनीकी, आयुष, पुलिस और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक दूसरे के विचार साझा करेंगे। मध्य प्रदेश शासन ने उच्च शिक्षा विभाग को इस कार्यक्रम के विनिमय के लिए नोडल संस्था नियुक्त किया है।

रायसेन स्थित बारला अकादमिक परिसर में पहुंचे नागालैंड के छात्रों के दल ने सांची विश्वविद्यालय के छात्रों एवं प्राध्यापकों से विभिन्न पाठ्यक्रमों, चयन प्रक्रिया, छात्रवृत्ति इत्यादि के संबंध में जानकारियां ली। नागा छात्रों का यह दल मध्य प्रदेश के विभिन्न एतिहासिक स्थलों का भी भ्रमण कर रहा है। प्रधानमंत्री के "एक भारत श्रेष्ठ भारत" कार्यक्रम के तहत मध्य प्रदेश से पर्यटन, तकनीक, आयुष, मेडिकल, पुलिस और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न दल नागालैंड और मणिपुर जाएंगे। नागालैंड के छात्रों के दल की ही तरह मणिपुर के छात्रों का दल भी मध्य प्रदेश आएगा।

1 4
- 'निष्काम कर्म योग से ही भारत राष्ट्रीय सूत्र में बंधा'
- 'आदि शंकराचार्य ने जातिवाद के विरुद्ध प्रखर स्वर उठाए'
- 'शास्त्र रचना का रूप ही आदि शंकराचार्य ने दिया था'

सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में बुधवार को ''जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी और एकात्‍म यात्रा'' विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। विश्‍वविद्यालय के बारला स्थित अकादमिक परिसर में परिचर्चा के दौरान सहायक प्राध्यापक श्री विश्व बंधु ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने निष्काम कर्म योग के माध्यम से भारत को राष्ट्रीय सूत्र में बांधने का प्रयास किया।
उनका कहना था कि जगदगुरु आदि शंकराचार्य के प्रयासों से ही भारत सांस्कृतिक सूत्र में एक रूप हो सका। श्री विश्वबंधु का कहना था कि आदि शंकराचार्य ने भारतीय ज्ञान परंपरा को अद्वैतवाद के तत्व द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्ध करते हुए जातिवाद के विरुद्ध प्रखर स्वर उठाए।
सहायक प्राध्यापक श्री नवीन दीक्षित ने कहा कि समाज के बांटने वाली शक्तियां भगवान बुद्ध और आदि शंकराचार्य को एक दूसरे के विरोधी की तरह चित्रित करती हैं जबकि दोनों की ही शिक्षाएं पूर्ण रूप से एकात्म होने का संदेश देती हैं।

परिचर्चा का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सह प्राध्यापक श्री नवीन मेहता ने कहा कि शास्त्र रचना का स्वरूप किस तरह का होना चाहिए यह आदि शंकराचार्य ने ही सर्वप्रथम बताया था।
एकात्म यात्रा मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 19 दिसंबर 2017 से 22 जनवरी 2018 तक की जा रही है। इस यात्रा का समापन 22 जनवरी को ओंकारेश्‍वर में होगा। इस यात्रा के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान संपूर्ण राष्ट्र को एक संस्कृति में एकात्म करने का प्रयास कर रहे हैं। इस यात्रा के ज़रिए भारत की भाषिक और शारीरिक विविधता के साथ-साथ विचार को एकात्म किये जाने के प्रयास हैं।
- रुस में बौद्ध धर्म और भारत को लेकर उत्साह, रुस में 15 लाख बौद्ध
- लियो टॉल्सटॉय के लेखन में भी था बौद्ध दर्शन का असर
- कई विपश्यना मेडिटेशन सेंटर हैं रूस में

सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में रूस में बौद्ध दर्शन के असर और फैलाव पर रुस में पत्रकार रहे श्री अजय कमलाकर की डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शित की गई। डॉक्यूमेंट्री के बाद अजय कमलाकर ने बताया कि रूस के तीन इलाकों में बौद्ध धर्म के करीब 15 लाख लोग मुख्यत: बसते हैं। बौद्ध धर्म भारत, चीन, मंगोलिया, सेंट्रल एशिया होते हुए रूस पहुंचा था। डॉ कमलाकर ने अपनी बनाई हुई इस छोटी सी डॉक्यूमेंट्री में यह भी बताया है कि कैसे इन इलाकों को देखने पर यह महसूस ही नहीं होता कि रूस में भी हिमालय और तिब्बत जैसा इलाका है। रूस मे यूरीयाटिया, ट्यूबा और कलानीसिया के स्वायत्त क्षेत्रों में मुख्यत: महायान बौद्ध धर्म के मानने वाले रहते हैं।

श्री अजय के अनुसार रूस में कम्यूनिस्ट शासन में किसी भी धर्म को मानने पर पाबंदी थी। लेकिन 1950 के बाद से ही रूस में धर्म पर लगाई गई पाबंदियां हटाई गईं और हर एक धर्म का मानने वाला पूरी आजादी से अपने धर्म की प्रेक्टिस कर सकता है। उनका कहना है रूस में कई सारे विपश्यना मेडिटेशन सेंटर खुल गए हैं जो कि लोगों को ध्यान करना सिखाते हैं। उन्होने सांची विवि और रुस के बौद्ध संस्थानों के बीच संबंध विकसित करने में सहयोग की भी बात कही।

डॉक्यूमेंट्री और बौद्ध दर्शन पर आधारित कई सारे प्रश्नों के जवाब में उन्होंने बताया कि रूस के विश्वविख्यात लेखक लियो टॉलस्टॉय के बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने बौद्ध धर्म का काफी गहराई से अध्ययन किया था और उसकी शिक्षाओं को अपने प्रतिदिन की दिनचर्या में शामिल किया था।

विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच श्री कमलाकर ने बताया कि रूस के ज़ार निकोलस द्वितीय के शासन के दौरान बौद्ध भिक्षुओं को विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान आमंत्रित किया जाने लगा था। उनका कहना था कि ज़ार निकोलस ने 1927 में समाधि भी ली थी। 2002 में उसकी समाधि को जब खोदा गया तो अध्ययन करने वाले डॉक्टरों का कहना था कि ऐसा महसूस हो रहा था कि मानो 24 घंटे पहले ही इस शख्स की मौत हुई हो।

सांची विश्वविद्यालय में छात्रों की जिज्ञासाओं का जवाब देने वाले श्री अजय कमलाकर लेखक एवं पत्रकार हैं। 2003-2007 के दौरान रूस की एक पत्रिका "रशिया बियॉन्ड द हेडलाइंस" के संपादक रहे। उन्होंने 2011-2017 के दौरान टाइम्स ग्रुप के समाचार पत्र सखालिन टाइम्स का संपादन भी किया। डॉ अजय रूस, श्रीलंका और स्वीडन में बौद्ध दर्शन, हिंदुत्व, व्यक्तित्व विकास जैसे विषयों पर विशेषज्ञता रखते हैं। पिछले दिनों उनकी किताब Globetrotting for Love and Other Stories from Sakhalin Island भी प्रकाशित हुई है।


1 2  3    4