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इतालवी शोधार्थी का हिंदी में व्याख्यान

दिनांक 16.01.2020

इतालवी शोधार्थी का हिंदी में व्याख्यान

  • ब्रजभाषा में प्रबोधचंद्रम के ब्रजवासी दास के अनुवाद पर शोध
  • शांतिनिकेतन में पढ़ाई कर रहीं है रोसीना पास्तोरे
  • 11वीं सदी के संस्कृत नाटक प्रबोधचंद्रम पर शोध
  • बॉलीवुड फिल्म देखकर हुईं हिंदी से प्रभावित

            सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में इतालवी (Italian) शोधार्थी ने ब्रजभाषा में शोध पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। रोसीना पास्तोरे स्विटज़रलैंड के लूज़ेन विश्वविद्यालय के भारतीय दर्शन विभाग में शोधार्थी हैं और इसी विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट असिस्टेंट के तौर पर कार्य करती हैं। रोसीना वर्तमान में विश्व भारती शांति निकेतन के भारतीय दर्शन विभाग में पी.एच.डी पूर्ण करने के लिए एक साल के लिए आई हैं, जिन्हें शांति निकेतन का हिंदी विभाग अपना पूरा सहयोग प्रदान कर रहा है।

            रोसीना पास्तोरे ने ब्रजवासीदास की ‘ब्रजभाषा’ के माध्यम से “प्रबोधचंद्रम के अनेक रूप और स्त्रोत” पर सांची विश्वविद्यालय के सभी विभागों के प्राध्यापकों और छात्रों, विशेषकर हिंदी विभाग के छात्रों के समक्ष अपना व्याख्यान केंद्रित किया। रोसीना पास्तोरे, संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम में दर्शन के पक्ष को ढूंढने का प्रयास कर रही हैं।

            विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से आयोजित किए गए इस व्याख्यान में रोसीना पास्तोरे ने बताया कि उन्होंने अपने अब तक के शोध में यह पाया है कि ब्रजवासीदास के द्वारा लिखे नाट्य प्रबोधचंद्रम पर संस्कृत में लिखे गए भरतमुनि के नाट्य का प्रभाव न होकर तुलसीदास की रामचरित्रमानस का अधिक प्रभाव है।

            ग्यारहवीं सदी में संस्कृत में लिखे गए प्रबोधचंद्रम को ब्रजवासीदास ने 17वीं शताब्दी में व्याख्यायित किया है। रोसीना का कहना है कि ब्रजवासीदास ने दरअसल ब्रज भाषा में ही प्रबोधचंमद्र को व्याख्यायित किया है क्योंकि उस दौर में ब्रज हिंदी का ज़ोर था। हिंदी भाषा भी संस्कृत से होते पहले ब्रज भाषा बनी और उसके बाद हिंदी भाषा बनी।

            रोसीना हिंदी से अपने हाईस्कूल के दौर में प्रभावित हो गई थीं जब उन्होंने एक बॉलीवुड फिल्म देखी थी। उनका यह हिंदी प्रेम बढ़ता चला गया और उन्होंने नेपल्स विश्वविद्यालय, इटली से हिंदी भाषा में बी.ए करने के बाद एम.ए किया। हिंदी भाषा की चाहत उन्हें भारत खींच लाई। वो 2012 में भारत आईं और उसके बाद उन्होंने भारत में ही किसी विश्वविद्यालय से पी.एच.डी करने का फैसला किया। अपनी पी.एच.डी पूर्ण करने के लिए वो 2018 में एक बार फिर भारत आईं हैं।

            शांतिनिकेतन से हिंदी की पढ़ाई करने पर वे गर्व महसूस करती हैं। रोसीना पास्तोरे का कहना है कि भारत के लोग भी उसी तरह से सरल और सहज हैं जिस तरह से वो इटली या दुनिया के अन्य किसी देश के लोगों को सरल पाती हैं।  

            सांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागध्यक्ष डॉ राहुल सिद्धार्थ का कहना है कि प्रबोध का अर्थ होता है अभ्युदय(awakening) और इसी प्रबोध से समाज में समरसता आती है, सौहार्द आता है। सांची विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. ओ.पी बुधोलिया ने सांची स्तूप पर केंद्रित क़िताब Monuments of Sanchi रोसीना पास्तोरे को भेंट की और उनके द्वारा हिंदी में व्याख्यान के साथ-साथ दर्शन के पक्ष को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।