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300 वर्षों में विज्ञान ने ही धरती को नुकसान पहुंचाया

दिनांक 04-02-2019

  • सांची विश्वविद्यालय में आई.आई.टी दिल्ली के प्रो. त्रिपाठी का विशिष्ट व्याख्यान
  • बुद्ध की शिक्षाओं से ही विश्वशांति संभव

सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में “शिक्षा और विचार में स्वावलंबन” विषय पर आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर वीके त्रिपाठी का विशिष्ट व्याख्यान हुआ। आई.आई.टी दिल्ली के फिज़िक्स विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर त्रिपाठी ने कहा कि पिछले 300 सालों में धरती को सबसे ज्यादा नुकसान विज्ञान ने ही पहुंचाया है। बुद्ध और गांधी के विचारों से प्रभावित प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि विज्ञान ने भले ही नए आयाम पैदा किए, उत्पादन बढ़ाया,स्वास्थ्य और संचार बढ़ाया लेकिन विज्ञान की तकनीकों के कारण दो वर्ल्ड वॉर और बाद में कई देशों में लाखों लोग मारे गए ।

एडम जोन्स की किताब ‘जिनोसाइड’ का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि भारत में अंग्रोज़ों के शासन से पहले अकाल नहीं पड़ता था क्योंकि किसान, मज़दूर के पास हुनर था। अंग्रेज़ों ने आकर देश के लोगों को वैज्ञानिक तकनीक सिखाने के नाम पर बेरोज़गार बना दिया। उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ों के भारत आने से पहले देश में सौहार्द था, लोग एक दूसरे के सुख-दुख में खड़े होते थे लेकिन 1857 की क्रांति के बाद ही अंग्रेज़ों ने देश में विभाजन के बीज बोने शुरू कर दिए थे।

अपने विशिष्ट व्याख्यान में गांधीवादी विचारक प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि देश के 88 प्रतिशत बच्चे विश्वविद्यालय स्तर तक की पढ़ाई तक पहुंच ही नहीं पाते। ऐसे में विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे छात्रों को चाहिए कि वो अपने ज्ञान को उन लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करें जिन तक ज्ञान पहुंचा ही नहीं। प्रो.
वी.के त्रिपाठी ने कहा कि बुद्ध ने 2500 साल पहले कहा था कि अगर आपके पास सत्य है तो इसको हथियार बनाते हुए जनविरोधी कार्यों को रोकने का भरसक प्रयास करें। उन्होंने कहा कि हिंसाग्रस्त विश्व में शांति के दूत गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर शोध और अध्ययन से भारत विश्व को शांति का मार्ग दिखा सकता है। प्रो त्रिपाठी के मुताबिक सभी धर्मों के मूल पर अध्ययन कर अगर साझा विरासत पर शोध की जाए तो शांति को पुन: स्थापित करने के प्रयास हो सकते हैं।

प्रो. त्रिपाठी पूरे देश में सद्भावना मिशन चलाते हैं और लोगों के बीच गांधीवादी विचारों को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। सद्भावना मिशन प्रत्येक रविवार को एक ही दिशा के 4-4 गावों तक मोबाइल लाइब्रेरी के माध्यम से पहुंचते हैं और मुफ्त में गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए पुस्तकें भेंट करते हैं। अगले 15 दिनों में टीम दोबारा उसी गांव में पहुंचती है और पुरानी पुस्तकों के बदले नई पुस्तकें पढ़ने के लिए देती है।

सांची विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय द्वारा आयोजित इस विशिष्ट व्याख्यान में सम्राट अशोक इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रो. के.के पंजाबी ने विदिशा की 81 वर्ष पुरानी सार्वजनिक लाइब्रेरी का उदाहरण भी दिया जहां मात्र 200 रुपए प्रतिमाह पर लोग ज्ञानार्जन कर रहे हैं।